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'सर्वहारा' में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में साहित्य की किसी भी विधा जैसे- कहानी, निबंध, आलेख, शोधालेख, संस्मरण, आत्मकथ्य, आलोचना, यात्रा-वृत्त, कविता, ग़ज़ल, दोहे, हाइकू इत्यादि का प्रकाशन किया जाता है।

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

मछलियों को तैरने का हुनर चाहिए ।
गंदला है पानी साफ़ नज़र चाहिए।

बातों से न होगा हासिल कुछ यहाँ,
आवाज़  में  थोड़ा  असर  चाहिए।

न देखो ज़ख्मों से बहता ख़ून मेरा,
लड़ने के लिए तो जिगर चाहिए।

कचरा ख़ुद नहीं होता दूर दरिया से,
फेंकने को किनारे पर लहर चाहिए।

हर सूरत बदलती है कोशिशों से ही,
कौन  कहता  है  मुक़द्दर  चाहिए।

अब चीर दे अँधेरे का सीना 'तन्हा',
रोशनी के लिए नई सहर चाहिए।


मोहसिन 'तन्हा'

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

शामिल है ये उसकी आदत में।
ख़ुश रहता है हर मुसीबत में।

सड़कों पे फ़ाकों से हो बसर,
पर वो जीता है हर हालत में।

उसके पसीने में जो है चमक
है वो कहाँ तुम्हारी दौलत में।

ता'मीरे मस्जिद पर ख़ुदा ख़ुश था,
इतना असर कहाँ इबादत में।

बेटियाँ भी हुईं घर की क़ाबिल,
गुज़ारे कई दिन ग़ुरबत में।

'तन्हा' गुमनामी के अंधरे भले,
अब दम घुटता है शोहरत में।



मोहसिन 'तन्हा'

ग़ज़ल


जबसे मुझे तुझसे प्यार हुआ ।
सारी दुनिया से बेज़ार हुआ ।

क्यों हुआ तेरा इतना दीवाना,
न वादा,कसम,इक़रार हुआ ।

हर तेरी मुलाक़ात से पहले,
दिल हर पल बेक़रार हुआ ।

मिलकर भी रहे हम अनजाने,
तेरी आँखों से ये इज़हार हुआ ।

अब क्या कहें तुझसे ऐ बेख़बर,
हालात का हर पल दीवार हुआ ।

न हासिल तू हुआ पर चर्चा,
गली,मुहल्ला,बाज़ार हुआ ।



मोहसिन तन्हा’ 

ग़ज़ल


चन्द पैसों में ख़ुशियों का सामां बिकता रहा ।
ख़रीदार रोज़ हिसाब अपना लिखता रहा ।

तू छोड़ गया शहर,  अपना पता भी गुम है,
भले कोई लाख चिट्ठियाँ नाम लिखता रहा ।

यूँ तो निशां ख़ंजर पर उसके ही हाथों के थे,
जवाबे बयानी में क़ातिल मुझको लिखता रहा ।

वो चाहता था होजाऊँ, क़ामयाब पाऊँ बुलंदी,
मैं नाकामियों से शोहरत अपनी लिखता रहा ।

दर्दे कलम से, दर्दे लम्हों को, समेटे दर्दों से,
तन्हा रोज़ ग़म की किताब लिखता रहा ।  


मोहसिन 'तन्हा'

ग़ज़ल


दिल में उठा है दर्द रात कटेगी कैसे ।                                                        
हो गई बरसात अब थमेगी कैसे ।

बारिशों के धुएँ में चिंगारी सी तुम,
लग गई आग अब बुझेगी कैसे ।  

कर दिया पहाड़ों को परेशान तुमने,
बर्फ़ उनकी अब जमेगी कैसे । 

घर की खिड़कियों को छोड़ दिया खुला,
कोई नज़र अब झुकेगी कैसे । 

उठी है दिल में शिद्दत से कोई बात,
होठों तक आकार अब रुकेगी कैसे । 



डॉ. मोहसिन तन्हा
स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष 
जे.एस.एम. महाविद्यालय,  
अलीबाग (महाराष्ट्र)

मो. 09860657970

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

कविता

नव वर्ष की मंगलकामना आप सभी को !!!
मेरी यह कविता आप सभी को सादर !!!




" वक़्त अच्छा हो जा "



कोई औपचारिकता नहीं 

इसलिए बने बनाए शब्दों का 


सहारा भी नहीं.....

मैं नहीं चाहता कि 
बरसों के घिसे-पिटे शुभकामनाओं
के शब्दों को
फ़िर से थोप दूं तुम पर
जैसा दुनिया करती आई है ।

मैं नहीं देता हूं तुम्हें....
कोई बधाई या शुभकामनाएं,
"इस अशुभ समय में"
अगर दूं तो महज़ यह एक दिखावा होगा ।

समय की बहती नदी 
और उसके माप की एक कोशिश
समय गणना (केलेंडर)
तुम्हें एक नये वक़्त का आभास देता होगा । 

मगर यह सच नहीं
वक़्त नहीं बदलता....
हम बदल जाते हैं
और हमारे बदलने को
वक़्त बदलना कह देते हैं ।

इसलिये ख़ुद को बदलो
और समय को बदल दो
समय लाता नहीं कुछ तुम्हारे लिये
तुम ही लाते हो
ख़ुद के लिये सब कुछ ।

इसलिये इस नये साल पर
नहीं कहुंगा, वह सब कुछ
जिसे दुनिया दोहराती है

मेरी तो इतनी ही पुकार है....
आज से हम
और भी अधिक भीतर से
हो जायें 
पावन, विनत, सदय, सहज, और समर्पित
ताकि वक़्त अच्छा हो जाए !

डॉ. मोहसिन ख़ान
अलिबाग़ (महाराष्ट्र)

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

हाल ही में ( दिसम्बर 2013 ) पाँच राज्यों में सम्पन्न चुनावों और दलों पर मेरी प्रतिक्रिया । हम जनता हैं और हमें जीवन में यही आभास होता है !!!


ग़ज़ल- 1  

सरकार कोई भी आए।
ठगी तो जनता ही जाए।

कुछ तो कम हो लेकिन,
बोझ तो बढ़ता ही जाए।

हो कैसे गुज़र सोचते हैं,
बदन घुलता ही जाए।

हो यहाँ क़ायम रौशनी,
सूरज ढलता ही जाए।

कबतक होगा ख़ाब पूरा,
सब्र पिघलता ही जाए।

दरिया में कहाँ बैठेगा,
परिंदा उड़ता ही जाए।

क़र्ज़ कम न होता दर्द का,
क़िश्त भरता ही जाए।

दो रोटी की भागदौड़ में,
दम निकलता ही जाए


ग़ज़ल- 2.

ये कैसी बात बताते हो ।
रोते-रोते भी हँसाते हो ।

हमसे पूछकर सारे राज़,
अपना ग़म ही छुपाते हो।

नफ़रतों से भरे लोगों में
बात मुहब्बत की सुनाते हो।

प्यासे हैं यहाँ ख़ून के,
चश्में यूँही बहाते हो।

नापाक़ हो गए छूने से
शक्ल कैसी बनाते हो।

'तन्हा' न समझूँ ख़ुद को,
कहाँ दोस्ती निबाहते हो


मोहसिन 'तन्हा'
स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष
एवं शोध निर्देशक  
जे. एस.  एम्.  महाविद्यालय,  
अलीबाग (महाराष्ट्र)
402201