सूचना

'सर्वहारा' में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में साहित्य की किसी भी विधा जैसे- कहानी, निबंध, आलेख, शोधालेख, संस्मरण, आत्मकथ्य, आलोचना, यात्रा-वृत्त, कविता, ग़ज़ल, दोहे, हाइकू इत्यादि का प्रकाशन किया जाता है।

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

15 कहानियों की परख

वर्ष 2015 में बैगलुरु-कर्नाटक से Pratilipi.com ने घोषणा की है कि दस हज़ार से अधिक कहानियों में से 15 कहानियाँ ऐसी हैं, जो कि सबसे अधिक पढ़ी गई हैं और उनके पाठकों की (रेटिंग) संख्या के आधार पर उन्हे श्रेष्ठ माना जाए, ऐसा साफ तो नहीं लेकिन मन्तव्य यही है। पहले स्थान पर मुंबई की शील निगम की रेपिस्ट कहानी है, जिसके पाठक 27259 हैं और यह संख्या निरंतर में बढ़ रही है। मैं कहानी की सफलता पाठकों द्वारा वेब पर पढ़ी गई संख्या के आधार पर मानूँ, कदापि संभव नहीं हो सकता है। सत्य तो यह है कि वेब पर पाठक जब सर्च करता है और सर्च के दौरान पृष्ठ खुलता है, तो अपने आप एक संख्या दर्ज हो जाती है। इसे पढ़ा जाना मानना बिलकुल भी प्रामाणिक नहीं है। होता यूं भी है कि कहानी का शीर्षक पाठक को आकर्षित करता है और पाठक उस कहानी पर क्लिक करता है, तो पढ़ा जाना मान लेना सही नहीं है। यह तकनीक का भी कमाल है और आपसी मानवी व्यवहार द्वारा बनाए गए सम्बन्धों का भी कमाल है कि सभी परिचितों को कहानी पढ़ने का संदेश भेजना और कहना कि मेरी कहानी इस वेब पर मौजूद है, कृपया पढ़ें, क्योंकि ऐसे संदेश लगातार मेरे पास भी आते हैं। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सअप तथा अन्य मध्यमों के द्वारा यह कार्य बड़े आसान तौर पर किया जा रहा है, कुछ हाथ वेब साइट का भी मानता हूँ, जो पाठकों तक कहानी अथवा रचना की सूचना पहुंचाते हैं। एक बात और यहाँ कहूँगा कि यूं तो पाठक को किसी वर्ग में बंटा नहीं मानता, लेकिन तकनीक के आजाने और उसे अपनाने से पाठक दो वर्गों में विभाजित हो गया है, एक वह जो पत्रिकाओं, अखबार, पुस्तकों के माध्यम से कहानी/रचना पढ़ रहा है और दूसरा वह जो इंटरनेट और कंप्यूटर/मोबाइल का उपयोग करते हुए कहानी/रचना पढ़ रहा है। पाठकों की कहानी पढ़ने के संबंध में सही गणना करना दुष्कर है, सही गणना नहीं की जा सकती है। केवल आंकड़ों पर किसी कहानी को बहुत अधिक प्रसिद्ध मान लेना, कहानी विधा के साथ अन्याय कहूँगा। कारण यह है कि गद्य की सबसे सशक्त विधा कहानी है और इसके आंतरिक गठन, संवाद भाषा, पात्र, यथार्थ, सामाजिक सरोकार, परिदृश्य और समय-काल के विषय में अधिक चेतना होना आवश्यक मानता हूँ और इसपर अधिक ज़ोर देकर खुले मन से इस पर चर्चा करना भी आवश्यक मानता हूँ। एक बार रचनाकर ने अपनी रचना समाज को सौंप दी, तो वह समाज की हो जाती है, उसपर क्रिया-प्रतिक्रिया होना आवश्यक हो जाता है। मैं यहाँ कहानी की निंदा करने के उद्देश्य से कोई बात नहीं कहूँगा, बल्कि उसके आंतरिक गठन और सशक्तता-अशक्तता के विषय में विचार कर रहा हूँ। इन 15 रचनाकारों की कहानी को लेकर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें खुले मन से आलोचनात्मक ढंग से प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह प्रश्न केवल प्रश्न करने के लिए नहीं किए गए हैं या रचनाकार को किसी भी तरह की अपनी विद्वता दर्शाने के उद्देश्य से नहीं हैं और न ही उनकी कोई निंदा या रचनात्मक अपमान, के लिए किए गए हैं, बल्कि कहानी पर सार्थक संवाद के लिए किए गए हैं। सब कहानियों को लेकर प्रश्न करूंगा यह निश्चित नहीं है, इन 15 कहानियों में कुछ कहानी शिल्प को लेकर अद्भुत और आंतरिक गठन को लेकर अत्यंत सजीव भी हैं। हर रचनाकर का अपना दृष्टिकोण होता है और वह कई चीजों, अवस्थाओं से गुजरकर रचनाकार बनता है, इसलिए प्रत्येक रचनाकार अपने में विशिष्ट और विविधता लिए हुए है, इसी से रचना में भी विविधता कई स्तरों पर देखी जा सकती है।
----------------------------------------------------------------------------------------------
शील निगम (मुंबई)         क्रमांक 1        
कहानी -  'रेपिस्ट' 
पाठक संख्या : २७२५९ 
       
मुंबई की हिन्दी रचनाकार शील निगम की कहानी रेपिस्टकुल मिलाकर एक जीवन की दीर्घकाल की घटना को समेटी हुए एक अच्छी कहानी है, ‘रेपिस्टकी नायिका विमला है, जिसके जीवन को केंद्र बनाकर कहानी रची गयी है। ये कहानी एक कहानी के प्लाट की ही रचना करती है, जिसमें विमला के जीवन के 16 वर्ष बाद विवाह से लेकर उसकी आत्महत्या की एक कथा है, जो सपाटबयानी से तेज़ गति में चलती हुई तेज़ी से प्रभाव जमाकर समाप्त हो जाती है।  
कहानी विमला के बहुत बड़े जीवन को केंद्र को समेट रही है, जो कि एक लंबे जीवन की गाथा है, उसे यूं कहानी में बांधकर तत्परता और शीघ्रता से समाप्त कर देना कहनी के भीतर कई प्रश्नों को स्वतः उभर जाना है। भाषा के स्तर से कहानी सपाट बयानी की कहानी है जो पाठकों को कहानीपन का आभास जगाती है और साधारण सी बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। संवादों का इस्तेमाल पात्रों के अनुरूप है। रंजन, राजीव और राजन नाम भी भ्रम उत्पन्न करने वाले हैं जो पाठक को भ्रमित करते होंगे, कारण यह है कि ये तीनों नाम एक जैसे ही नज़र आते हैं थोड़ा सा अंतर है, कमला और विमला मैं भी यही स्थिति है। यह कहानी यथार्थ के धरातल पर सृजित कहानी  आधार पाकर रची हुई अधिक लग रही है। फिर भी कहानी का विषय स्त्री जीवन की उस दर्दनाक घटना का वर्णन करता है, जिसमें स्त्री को पुरुष वर्ग से बलात होने का अन्याय सहन करना पड़ता है। विमला ऐसे ही पात्र का प्रतीक है, जो हमारे देश में कई जगहों पर पाया जा सकता है। शारीरिक और मानसिक बलात किसी भी स्त्री को मौत के मुंह में आसानी से ले जा सकता है और ऐसी दु:खद घटनाएँ आम जीवन में लगातार हो रही हैं।

मूल कहानी इस लिंक http://www.pratilipi.com/blog/4565453695352832 पर पढ़िये।

----------------------------------------------------------------------------------------------
©डॉ.मोहसिन ख़ान
हिन्दी विभागाध्याक्ष एवं शोध निर्देशक
जे.एस.एम. महाविद्यालय,
अलीबाग – 402 201
(महाराष्ट्र)