ग़ज़ल – 1
ये बात नहीं तुम्हें बताने के लिए,
क्यों हारा हूँ उसे जिताने के लिए ।
क्यों हारा हूँ उसे जिताने के लिए ।
गर बन्द है मुट्ठी तो इक रोब है,
खोलूँ तो कुछ नहीं दिखाने के लिए ।
खोलूँ तो कुछ नहीं दिखाने के लिए ।
यूँ तो कोई रंजिश नहीं रही तुमसे,
जी नहीं करता हाथ मिलाने के लिए ।
जी नहीं करता हाथ मिलाने के लिए ।
हो रहे हैं उनके बेतहाशा बच्चे,
पास नहीं कुछ खिलाने के लिए ।
पास नहीं कुछ खिलाने के लिए ।
क्या दौलत, शोहरत सब फिज़ूल,
दीवानगी चाहिए दीवाने के लिए ।
दीवानगी चाहिए दीवाने के लिए ।
वो रवायत से हो जाए दफ़्न इसलिए,
कुछ रिश्ते चाहिए निभाने के लिए ।
कुछ रिश्ते चाहिए निभाने के लिए ।
मैं ‘तन्हा’ ही लड़ता रहूँगा दुनिया से,
वक़्त लगेगा मुझे मिटाने के लिए ।
ग़ज़ल – 2
वो सच ही कहता है,
ख़ुदा दिल में रहता है ।
ख़ुदा दिल में रहता है ।
सब चैन से सोते हैं,
पहरेदार जगता है ।
पहरेदार जगता है ।
ये दुनिया भी अजब है,
इंसा आता है,जाता है ।
इंसा आता है,जाता है ।
किसी को मिला सबकुछ,
कोई सबकुछ खोता है ।
कोई सबकुछ खोता है ।
जो ख़ुशी में बहाए आँसू,
वो ही ग़म में हँसता है ।
वो ही ग़म में हँसता है ।
रंज, ग़म, ख़ार, दर्द,
अपना सबसे नाता है ।
अपना सबसे नाता है ।
मेरी तो यही तालीम है,
जो फ़कीर गाता है ।
जो फ़कीर गाता है ।
नाज़ न कर खुद पे,
इंसा मिट जाता है ।
इंसा मिट जाता है ।
‘तन्हा’ सबको जाना है,
क्यों घर बसाता है ।
क्यों घर बसाता है ।
मोहसिन ‘तन्हा’
सहा.प्राध्यापक हिन्दी
जे.एस.एम. महाविद्यालय,
अलीबाग (महाराष्ट्र)
मो. 09860657970
Khanhind01@gmail.com