सूचना

'सर्वहारा' में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में साहित्य की किसी भी विधा जैसे- कहानी, निबंध, आलेख, शोधालेख, संस्मरण, आत्मकथ्य, आलोचना, यात्रा-वृत्त, कविता, ग़ज़ल, दोहे, हाइकू इत्यादि का प्रकाशन किया जाता है।

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

शामिल है ये उसकी आदत में।
ख़ुश रहता है हर मुसीबत में।

सड़कों पे फ़ाकों से हो बसर,
पर वो जीता है हर हालत में।

उसके पसीने में जो है चमक
है वो कहाँ तुम्हारी दौलत में।

ता'मीरे मस्जिद पर ख़ुदा ख़ुश था,
इतना असर कहाँ इबादत में।

बेटियाँ भी हुईं घर की क़ाबिल,
गुज़ारे कई दिन ग़ुरबत में।

'तन्हा' गुमनामी के अंधरे भले,
अब दम घुटता है शोहरत में।



मोहसिन 'तन्हा'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें