मुल्क़ को कभी हिन्दू
कभी मुसलमान बना रहे हैं ।
ये सियासती इसकी कैसी पहचान बना रहे हैं ।
ये सियासती इसकी कैसी पहचान बना रहे हैं ।
तक़सीम हुआ है आदमी
गुमराहियों के खंजर से,
क्यों यहाँ लोग चेहरे पे ऐसे निशान बना रहे हैं ।
क्यों यहाँ लोग चेहरे पे ऐसे निशान बना रहे हैं ।
लूटना ही जिनकी फ़ितरत
हो वो और क्या जानें,
सिर्फ़ दौलत को ही अपना ईमान बना रहे हैं ।
सिर्फ़ दौलत को ही अपना ईमान बना रहे हैं ।
गढ़कर ग़लत इबारतों और नापाक़ इरादों से,
कुछ लोग यहाँ दूसरा ही संविधान बना रहे हैं ।
ख़ाली हाथ किसी हथियार से कम नहीं होता है,
थमाने को उसके हाथों में सामान बना रहे हैं ।
चालाक़ी से बोई नफ़रतों की फ़सल दिलों में,
किसी को राम किसी को रहमान बना रहे हैं ।
कुछ लोग यहाँ दूसरा ही संविधान बना रहे हैं ।
ख़ाली हाथ किसी हथियार से कम नहीं होता है,
थमाने को उसके हाथों में सामान बना रहे हैं ।
चालाक़ी से बोई नफ़रतों की फ़सल दिलों में,
किसी को राम किसी को रहमान बना रहे हैं ।
बँट
गया है मुल्क़ कितने छोटे छोटे इलाक़ों में,
कहीं हिंदुस्तान, कहीं पाकिस्तान बना रहे हैं ।
कहीं हिंदुस्तान, कहीं पाकिस्तान बना रहे हैं ।
'तन्हा' देखता है तस्वीर बादे आज़ादी की गौर से,
कुछ दरिन्दे मिलकर यहाँ हैवान बना रहे हैं ।
कुछ दरिन्दे मिलकर यहाँ हैवान बना रहे हैं ।
मोहसिन 'तनहा'
09860657970
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क्या इलज़ाम धरें ओहदेदारों पर ।
किश्तियाँ डूब रहीं हैं किनारों पर ।
छत के साथ मेरा होंसला भी टूटा,
कैसे करें भरोसा हम दीवारों पर ।
मुझे क़ातिल बना दिया क़ातिलों ने,
मुक़दमा कैसे करें क़ुसूरवारों पर ।
वो क्या जानेंगे आग की तपिश को,
बस्तियाँ सुलगीं जिनके इशारों पर ।
एक हम ही नहीं मुहाजिर शहर में,
रोज़ बस रहे हैं लोग हज़ारों पर ।
बस भूख ही सबब है उसके आने का,
जब लंगर बँटता है मज़ारों पर ।
'तन्हा' कैसे जिएँ उनके चले जाने से,
ज़िन्दा थे हम जिनके सहारों पर ।
मोहसिन 'तनहा'
छत के साथ मेरा होंसला भी टूटा,
कैसे करें भरोसा हम दीवारों पर ।
मुझे क़ातिल बना दिया क़ातिलों ने,
मुक़दमा कैसे करें क़ुसूरवारों पर ।
वो क्या जानेंगे आग की तपिश को,
बस्तियाँ सुलगीं जिनके इशारों पर ।
एक हम ही नहीं मुहाजिर शहर में,
रोज़ बस रहे हैं लोग हज़ारों पर ।
बस भूख ही सबब है उसके आने का,
जब लंगर बँटता है मज़ारों पर ।
'तन्हा' कैसे जिएँ उनके चले जाने से,
ज़िन्दा थे हम जिनके सहारों पर ।
मोहसिन 'तनहा'
09860657970