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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

शामिल है ये उसकी आदत में।
ख़ुश रहता है हर मुसीबत में।

सड़कों पे फ़ाकों से हो बसर,
पर वो जीता है हर हालत में।

उसके पसीने में जो है चमक
है वो कहाँ तुम्हारी दौलत में।

ता'मीरे मस्जिद पर ख़ुदा ख़ुश था,
इतना असर कहाँ इबादत में।

बेटियाँ भी हुईं घर की क़ाबिल,
गुज़ारे कई दिन ग़ुरबत में।

'तन्हा' गुमनामी के अंधरे भले,
अब दम घुटता है शोहरत में।



मोहसिन 'तन्हा'

ग़ज़ल


जबसे मुझे तुझसे प्यार हुआ ।
सारी दुनिया से बेज़ार हुआ ।

क्यों हुआ तेरा इतना दीवाना,
न वादा,कसम,इक़रार हुआ ।

हर तेरी मुलाक़ात से पहले,
दिल हर पल बेक़रार हुआ ।

मिलकर भी रहे हम अनजाने,
तेरी आँखों से ये इज़हार हुआ ।

अब क्या कहें तुझसे ऐ बेख़बर,
हालात का हर पल दीवार हुआ ।

न हासिल तू हुआ पर चर्चा,
गली,मुहल्ला,बाज़ार हुआ ।



मोहसिन तन्हा’ 

ग़ज़ल


चन्द पैसों में ख़ुशियों का सामां बिकता रहा ।
ख़रीदार रोज़ हिसाब अपना लिखता रहा ।

तू छोड़ गया शहर,  अपना पता भी गुम है,
भले कोई लाख चिट्ठियाँ नाम लिखता रहा ।

यूँ तो निशां ख़ंजर पर उसके ही हाथों के थे,
जवाबे बयानी में क़ातिल मुझको लिखता रहा ।

वो चाहता था होजाऊँ, क़ामयाब पाऊँ बुलंदी,
मैं नाकामियों से शोहरत अपनी लिखता रहा ।

दर्दे कलम से, दर्दे लम्हों को, समेटे दर्दों से,
तन्हा रोज़ ग़म की किताब लिखता रहा ।  


मोहसिन 'तन्हा'

ग़ज़ल


दिल में उठा है दर्द रात कटेगी कैसे ।                                                        
हो गई बरसात अब थमेगी कैसे ।

बारिशों के धुएँ में चिंगारी सी तुम,
लग गई आग अब बुझेगी कैसे ।  

कर दिया पहाड़ों को परेशान तुमने,
बर्फ़ उनकी अब जमेगी कैसे । 

घर की खिड़कियों को छोड़ दिया खुला,
कोई नज़र अब झुकेगी कैसे । 

उठी है दिल में शिद्दत से कोई बात,
होठों तक आकार अब रुकेगी कैसे । 



डॉ. मोहसिन तन्हा
स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष 
जे.एस.एम. महाविद्यालय,  
अलीबाग (महाराष्ट्र)

मो. 09860657970