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'सर्वहारा' में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में साहित्य की किसी भी विधा जैसे- कहानी, निबंध, आलेख, शोधालेख, संस्मरण, आत्मकथ्य, आलोचना, यात्रा-वृत्त, कविता, ग़ज़ल, दोहे, हाइकू इत्यादि का प्रकाशन किया जाता है।

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

दोहे (काव्य)

हिन्दी साहित्य में यूँ तो दोहों की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, परंतु दोहों में अपनी संवेदना, भाव और चिंताओं को समा लेना रचनाकारों का कमाल का हुनर होने के साथ अप्रतिम शैली के प्रति रुचि का भाव भी दर्शाता है। हिन्दी और अन्य भाषाओं के कई कवियों ने दोहों को ही अपने साहित्य की अभिव्यक्ति के लिए उत्तम माना जिसमे कबीर, तुलसीदास, रहीम, बिहारी इत्यादि ने इसे पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया। इसी के तहत आधुनिक कवियों ने दोहों की परंपरा में नए भाव, अनुभूतियों, विचारों, प्रतीकों, बिंबों इत्यादि को नये सिरे से तलाश करते हुए अपना अप्रतिम प्रतिभा का योगदान दिया। "सर्वहारा" ब्लॉग एक बहुत ही विशेष दोहाकार को खोजकर आपके सामने लाया है, इनके दोहे समय, समाज, संघर्ष, घात-प्रतिघात और व्यक्ति के मन की गहराइयों से संवाद करते हुए इस तरह जीवन में उतर जाते हैं जैसे पानी हमारी प्यास बुझाते हुए हममें समाहित हो जाता है। आज करवाचौथ के अवसर पर दोहकार का प्रथम दोहा ही आपके जीवन के प्रतिरूप को दर्शाता हुआ एक विश्वास की पूँजी आपको सौंप जाएगा ऐसा मेरा विश्वास है-
संपादक- "सर्वहारा" (डॉ. मोहसिन ख़ान) 
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रचनाकर का परिचय-
नाम : विजेंद्र शर्मा (डिप्टी कमांडेंट- सीमा सुरक्षा बल)
शिक्षा : बी टेकएम. बी. ए.
जन्म 15  अगस्त 1972  हनुमानगढ़ राजस्थान
समकालीन शायरों पर एक शख्सीयत ...नाम से मुख़्तलिफ़ मुख़्तलिफ़ अखबारात के लिए लेखन,  शायरी से मुत्लिक़ बहुत से मज़मून और दोहा लेखन ..."जीने के आदाब" एक ऑडियो सी. डी. 51 दोहों की 2015 में मंज़रे आम पर (यू ट्यूब पर उपलब्ध) 
सम्प्रति .... डिप्टी कमांडेंट - सीमा सुरक्षा बल जोधपुर  में  अधिकारी
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दोहे-
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इक रिश्ता बेनाम सा चला थाम के हाथ !
इक रिश्ता घुटता रहालेकर फेरे साथ !!
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आँख खुली तो भोर ने, माँगा यही हिसाब !
पलकों की दहलीज़ तकआये कितने ख़्वाब !!
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सीखो किसी फ़क़ीर सेजीने के  आदाब !
यारों इस तालीम कीहोती नहीं किताब !!
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पहरेदारी मुल्क़ कीसौंप हमारे हाथ  !
सारा  भारत चैन सेसोये सारी रात  !!
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आँखों को भी है गिलाकरे शिकायत गाल !
बैरी ख़ुद आया नहीं,  भिजवा   दिया गुलाल !!
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सर पर माँ का हाथ हैक्या दूँ और सुबूत !
मुझको लिए बगैर हीलौट गए यमदूत !!
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सच का अपना खेल हैखेल सके तो खेल !
जलता है सच का दियाबिन बाती बिन तेल !!
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याद तुम्हारी जब कभीकर देगी हड़ताल !
पूछेंगे उस रोज़ हमख़ुद से अपना हाल !!
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कभी ठहरते ही नहीं, जीवन के दिन -रात !
पर ठहरा वो एक पलजिसमे तुम थे साथ !!
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क्या -क्या हमको दे गये, ग़ालिब तुलसी सूर !
नस्ल हमारे दौर कीइनसे भागे दूर !!
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जलते रहे चराग़ सेमहफ़िल में हम रात !
चाँद सितारों की छपीअख़बारों में बात !!
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दिल की चादर तंग हैकहाँ पसारें पाँव !
चलें यार इस शहर सेअपने-अपने गाँव !!
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कहाँ गई वो लोरियांकहाँ गये वो चाव !
बच्चों ने भी फाड़ दीकाग़ज़ वाली नाव !!

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इक सच बोला और फिरदेखा ऐसा हाल !
कुछ ने नज़रें फेर ली, कुछ की आँखें लाल !!
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उलझें नहीं अज़ान सेफिर मंदिर के शंख !
अगर वक़्त पे नोच देंअफ़वाहों के पंख !!
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ऐसे दिन भी आ गएकिन करमों के  लेख !
चूहा बोले शेर सेमुझे छेड़ के देख !! 
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देना  है तो दे ख़ुदाऐसा हमे मिज़ाज !
ख़ुद्दारी सर पर रहेठोकर में हो ताज !!
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भले  क़लम दे हाथ मेंया दे दे तलवार !
मौला इनकी तू मगरपैनी रखियो धार !!
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मुझको यही सवाल बसनौच रहा दिन रात !
मैं जब तेरे साथ थातू था  किसके  साथ  !!
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तब तो  हमको सौंप दीजब था तेज़ बहाव !
पहुँच किनारे हो गयीकिसी और की नाव !!
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वफ़ा किसी के साथ तोसाथ किसी के घात !
रूह किसी के साथ हैजिस्म किसी के साथ !!
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शिद्दत वफ़ा जुनून काहोता है ये मेल !
ऐसे वैसे खेल लेंइश्क़ नहीं वो खेल !!
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मुर्दा से इस जिस्म मेंफूंक जाय है जान !
कैसे तेरी याद का, उतरेगा  अहसान !!
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दरिया तेरा दायराबढ़ तो गया ज़रूर !
मगर किनारे हो गएपहले से भी दूर !!
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इस्टेशन पर रह गएहम लहराते हाथ !
कोई ख़ुद को छोड़करहमे ले गया साथ !!
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