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बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

कविता 'हम केवल दर्शक हैं !'

हम केवल दर्शक हैं !
हो रहा चारों ओर हवाला, घोटाला और बलात्कार,
लेकिन हमें क्या !
हम केवल दर्शक हैं !
आज राह में गिरे व्यक्ति को कोई नहीं उठाता,
बस जुट जाती है भीड़
क्योंकि हम केवल दर्शक हैं !
चीन, पाकिस्तान घुस आए सीमा में
हो रही रोज़ मुटभेड़
कर रहें हैं केवल निंदा
नहीं कर रहे विरोध इसका ।
हम केवल दर्शक हैं !
नेता बेच रहे ईमान वोट का हो रहा भुगतान,
भ्रष्टाचार के बन रहे नित नए कीर्तिमान,
लेकिन हमें क्या,
हम केवल दर्शक हैं !
ग़रीब का हो रहा शोषण,
युवा के मर रहे स्वप्न,
पूरे पाँच साल वादे और आश्वासन,
कब तक चलता रहेगा ऐसा !
अब तो करना ही होगा क्रांतिकारी परिवर्तन,
क्योंकि हम भारत के लोग हैं
हम केवल दर्शक नहीं हो सकते !           ( 1997 में युवा महोत्सव में पुरस्कृत रचना )


धीरेन्द्र केरवाल

सहायक प्राध्यापक- अर्थशास्त्र ,
उज्जैन (मध्यप्रदेश)

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