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गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

कविता

नव वर्ष की मंगलकामना आप सभी को !!!
मेरी यह कविता आप सभी को सादर !!!




" वक़्त अच्छा हो जा "



कोई औपचारिकता नहीं 

इसलिए बने बनाए शब्दों का 


सहारा भी नहीं.....

मैं नहीं चाहता कि 
बरसों के घिसे-पिटे शुभकामनाओं
के शब्दों को
फ़िर से थोप दूं तुम पर
जैसा दुनिया करती आई है ।

मैं नहीं देता हूं तुम्हें....
कोई बधाई या शुभकामनाएं,
"इस अशुभ समय में"
अगर दूं तो महज़ यह एक दिखावा होगा ।

समय की बहती नदी 
और उसके माप की एक कोशिश
समय गणना (केलेंडर)
तुम्हें एक नये वक़्त का आभास देता होगा । 

मगर यह सच नहीं
वक़्त नहीं बदलता....
हम बदल जाते हैं
और हमारे बदलने को
वक़्त बदलना कह देते हैं ।

इसलिये ख़ुद को बदलो
और समय को बदल दो
समय लाता नहीं कुछ तुम्हारे लिये
तुम ही लाते हो
ख़ुद के लिये सब कुछ ।

इसलिये इस नये साल पर
नहीं कहुंगा, वह सब कुछ
जिसे दुनिया दोहराती है

मेरी तो इतनी ही पुकार है....
आज से हम
और भी अधिक भीतर से
हो जायें 
पावन, विनत, सदय, सहज, और समर्पित
ताकि वक़्त अच्छा हो जाए !

डॉ. मोहसिन ख़ान
अलिबाग़ (महाराष्ट्र)