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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

15 कहानियों की परख

४. इरा टाक 

कहानी - फ्लर्टिंग मेनिया 
पाठक संख्या : १९३१३ 
फ्लर्टिंग मेनिया
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यह एक प्रेम कहानी है, इस कहानी का ताना-बाना युवा प्रेम को लेकर बुना हुआ है, एक पक्ष पूरा प्रेम को समर्पित है, वहीँ दूसरा पक्ष फ्लर्टिंग में विशवास करता है। वर्तमान समय में फेसबुक के माध्यम से जिस प्रकार से फ्लर्टिंग की जा रही है, उसमें लड़कों द्वारा बहुत अधिक मात्रा में इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। लेखिका ने पूजा और विक्रांत के प्रेम को लेकर फेसबुक के माध्यम से प्रेम के विशवास को परखने की कहानी को रचा है, जो कहानी अपने साधारण रूप को लेकर सामने आती है। एक तरफ विक्रांत है जो कि एक कंपनी में विज्ञापन के कार्य में संलग्न है, दूसरी तरफ पूजा है जो कि जर्नलिस्ट है, पूजा प्रेम में विशवास रखती है और विक्रांत फ्लर्टिंग में विशवास रखता है। विक्रांत इसी नाते बदनाम भी है और पूजा को कई लोगों ने चेतावनी भी दी है कि विक्रांत तुम्हारा उपयोग करके छोड़ देगा, लेकिन पूजा उसे प्रेम करती है इसलिए उसके प्रति सनुभूति का रवैया रखती है और उसे अपने प्रेम पर विशवास है। पूजा विजया के कहने पर विक्रांत को परखती है कि क्या विक्रांत फ्लर्टिंग में विशवास रखता है? इसलिए वह फेसबुक पर एक अपना अकाउंट शिवाली के नाम से बनाती है और उसके साथ फ्लर्ट करने लगती है। समय के साथ फ्लर्ट चलता है और विक्रांत को यह पता नहीं रहता है कि पूजा ही शिवाली है, फेसबुक के माध्यम से एक सुबह विक्रांत शिवाली से चेटिंग के माध्यम से उसके फोन नंबर का आग्रह करता है लेकिन शिवाली फोन नंबर नहीं देती है और कहती है कि पहले वह उससे मिलेगी उसके बाद ही अपना फोन नंबर देगी। मिलने का समय तय होता है, अपने ऑफिस का काम ख़त्म करके विक्रांत एक रेस्तरां में शिवाली की प्रतीक्षा करता है, तब ही वहां पूजा अपनी सहेली विजया को लेकर रेस्तरां में दाखिल होती है और फिर विक्रांत का सारा भांडा फूट जाता है। कहा-सुनी के बाद पूजा विक्रम से नाराज़ होकर अपने रूम पर लौट जाती है। विक्रांत उसकी नाराज़गी से आहत होता है और मन ही मन वह आभास करता है कि गलती उसी की है। उसे पश्चाताप होता है, वह पूजा को फोन लगाता है, वह फोन नहीं उठाती है, अपने एक्सीडेंट की खबर मेसेज से देता है तो पूजा समझ जाती है कि खबर झूठी है। अपने एक मित्र राजेश को बीच में डालकर पूजा से मिलाने का आग्रह करता है, पूजा से मिलने के अवसर को राजेश पुख्ता बनाने के लिए उसे प्रेम का नुस्खा देता है कि उसके लिए हीरे की अंगूठी लेजाना। राजेश के कहने पर विक्रांत वैसा ही करता है और पूजा के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखते हुए उसे अंगूठी पहना देता है। यहीं कहानी का अंत हो जाता है।

इस अंत के साथ ही कहानी अपनी साधारण अवस्था को लेकर हमारे समक्ष उपस्थित होती है, इस कहानी में ऐसी कोई भी विशेषता नहीं है, जिसके माध्यम से कोई सामाजिक पहलू या उसके किसी आयाम को रेखांकित किया जाए, यह एक हलके फुल्के मनोरंजन के लिए लिखी गयी प्रेम कहानी है, पाठकों की संख्या १९३१३ दर्ज की गयी है, वह केवल और केवल कहानी के शीर्षक के आकर्षण को लेकर ही बन पाई है, कहानी में ऐसी कोई भी विशेषता नहीं कि वह इतने पाठकों के बीच प्रसिद्द हुई हो। कहानी का कहनपन अत्यंत साधारण और अपरिपक्व सा है, जिसे साधारण कहानी की कोटि में रखा जा सकता है। ऐसी कहानियां साधारण पत्रिकाओं में अक्सर पढ़ने को मिलती हैं या अखबार में प्रकाशित की जाती हैं। कहानी जैसी गंभीर विधा में यह कहानी अपना कोई स्थान नहीं रख पाएगी, क्योंकि इसमें समाज की कोई गंभीर समस्या, घटना, मुद्दा आदि तो है ही नहीं बस साधारण सी फिक्शन वाली प्रेम कथा को आधुनिक समय की भाषा में बुना गया है, इस कहानी की भाषा अभी की पीढ़ी की भाषा का प्रतिनिधित्व करती है साथ ही वर्तमान युवाओं की जीवन शैली को भी रेखांकित करती है। कहानी का अंत बड़ा ही साधारण हुआ है, कहानी पढ़ते समय ही मध्य में पाठक अंदाज़ा लगा लेता है कि इसका अंत क्या होने वाला है। कहनी का प्रारंभ, मध्य और अंत एकदम साधारण है, पात्रों के चरित्र के विश्लेषण की स्थिति इस कहानी में बन ही न पाएगी क्योंकि यह कहानी उस स्तर कि है भी नहीं जो पत्रों की किसी विशेषता को दर्शा पाए। बिना किसी वातावरण के कहानी सरपट दौड़ती है और अपने अंत को छू लेती है। संवादात्मक तौर पर कहानी में संवादों की स्थिति होना कहनी की मांग है, जिसका अवश्य निर्वाह हो पाया है इसी संवादात्मकता पर सम्पूर्ण कहानी में कसाव बना हुआ है, विषय की दृष्टि से कहानी कोई भी अपना कमाल नहीं दिखा पाती है। मुझे आश्चर्य है कि इतने पाठकों की संख्या दर्ज दिखाई देती है यह केवल उस शीर्षक को क्लिक करने के कारण ही बन पाई है।

मूल कहानी इस लिंक http://www.pratilipi.com/blog/4565453695352832 पर पढ़िये।

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©डॉ.मोहसिन ख़ान
हिन्दी विभागाध्याक्ष एवं शोध निर्देशक
जे.एस.एम. महाविद्यालय,
अलीबाग – 402 201
(महाराष्ट्र)