ग़ज़ल
वक़्त ने आज सबक़ सिखा दिया,
आवाम ने आईना दिखा दिया ।
ख़ूब रही ख़िलाफते-जंग दौराँ,
हमने पानी उनको पिला दिया ।
बंद आँखों से वादों पे किया यकीं,
सोचो तुमने क्या सिला दिया ।
तख़्त पर जो जमकर बैठे थे,
ख़ाक में उनको मिला दिया ।
हुक़ुमते ज़ुल्म को सहते रहे,
आज उनको मिटा दिया ।
ताक़त पर जिनको गुमान था,
पैर उनका ज़मीं से हिला दिया ।
ग़ज़ल
कोई बात अब याद नहीं आती ।
ज़िंदगी अब साथ नहीं आती ।
हम चलते, थकते रहे धूप-छाँव में,
कभी ख़ुशी की सौग़ात नहीं आती ।
हम दूर खड़े रहे उस गाँव में,
जहाँ कोई बारात नहीं आती ।
तुमने पूछा हो हाल मेरा किसी से,
नज़र मुझे ऐसी बात नहीं आती ।
क्यों करते हो नफ़रत मुझसे इतनी,
ख़ुदा की तरफ से ज़ात नहीं आती ।
तरसते हैं हर चमकती चीज़ की लिए,
ग़रीबों को अमीरी हाथ नहीं आती ।
बहोत सताया दर्दे हालत ने मुझको,
चैन से सोऊँ ऐसी रात नहीं आती ।
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ग़ज़ल
माना के मुल्क़ में बहोत हैं दुश्वारियाँ ।
फ़िर भी दिलों में हैं दिलदारियाँ ।
हर तरफ़ गोलियाँ हैं, ख़ौफ़े बारूद है,
फ़िर भी बचीं हैं अभी फुलवारियाँ ।
ख़ुद मिट जाएगा एक दिन भ्रष्टाचार,
रूह में जब जागती हैं ईमानदारियाँ ।
ख़ुशी, हँसी, अमन छीन लिया तुमने,
ख़ौफ़ से भला मरतीं हैं किलकारियाँ,
सर्द, सियाह रात ढल जाएगी इक रोज़,
कुछ अभी भी बचीं हैं चिंगारियाँ ।
ओ! अमरीका तेरा रुतबा होगा जग में,
कुछ हम भी रखते हैं ख़ुद्दारियाँ ।
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