ग़ज़ल
वो शान से चल दिया चर्चा शहर में था,
देखा सबने न उस दिन कोई घर में था ।
उसके आमाल देखकर मैं दंग रह गया,
आज वो अख़बार की हर ख़बर में था ।
सब की आंखें नम थीं और दिल ग़मगी़ं,
उसका चेहरा सबकी नज़र में था ।
क्या मक़ाम हांसिल था, सब कहते रहे,
अभी तो वो मंज़िल के सफ़र में था ।
ग़ज़ल
उनके हाथों का मुँह में निवाला होता ।
होकर तैयार रोज़ जाते बैठकर बस में,
किसी ने हमको स्कूल में डाला होता ।
सड़कों, गलियों की अँधेरी रात की ज़िंदगी,
हमारी दुनिया में भी रेशमी उजाला होता ।
यूँ न गिरते अपनी नज़र में आज हम,
गर हमें भी किसी ने सँभाला होता ।
डॉ. मोहसिन ख़ान
अलीबाग़ (महाराष्ट्र)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें