झूटों
के बीच नाक़ाम हो गए ।
कइयों
के सच्चे नाम हो गए ।
की
ख़िलाफ़त तो हुए बेसहारा,
मेरे
सिर कई इल्ज़ाम हो गए ।
जो
देखा बेतक़ल्लुफ़ कह दिया,
कहते
ही हम बदनाम हो गए ।
देखते
ही बुतख़ाना सिर झुका,
सबने
कहा हम हराम हो गए ।
सच
कहा तो मिल गए ख़ाक में,
और ऊँचे
उनके मक़ाम हो गए ।
ग़ज़ल
चुप
रहिये कुछ न कहिये मुस्कराते जाइए ।
ये
दौर है ज़ुल्मों का बस सहते जाइए ।
कोई
जौहर न दिखाए और न चिल्लाए,
वक़्त
की धार के सहारे बहते जाइए ।
अब
पाएदान औंधा है और रास्ते उल्टे,
चलिये
तहख़ानों में उतरते जाइए ।
न
हो कोई मज़हब और न ही कोई नाम,
जब
भी लगे ख़तरा तो बदलते जाइए ।
काट
ली जीने की सज़ा तो इक काम कीजे,
जो
जी रहे हैं उनको तसल्ली देते जाइए ।
बढ़
रहे हैं मौत की तरफ़ हम भी तुम भी,
शमा
की तरह जलते, पिघलते जाइए ।
वाह बहुत शानदार !!!
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