ग़ज़ल
क्यूंकर जीता हूँ परेशानी में,
बस एक बल है पानी में ।
दुनिया क्या समझेगी हाल मेरा,
वो जी ती है अपनी रवानी में ।
वो जी ती है अपनी रवानी में ।
डर लगता है कहीं अब ढह न जाए,
नयी कील ठुकी दीवार पुरानी में ।
नयी कील ठुकी दीवार पुरानी में ।
माँ पास होती तो आज पी जाती,
शल जो पड़े हैं कब से पेशानी में ।
शल जो पड़े हैं कब से पेशानी में ।
वक़्त ने लिखा हक़ीक़त का फ़साना,
दिल न लगा पारियों की कहानी में ।
दिल न लगा पारियों की कहानी में ।
अबकी नस्ल में क्यों नहीं जोश,
हरेक लगता है बूढ़ा जवानी में ।
हरेक लगता है बूढ़ा जवानी में ।
‘तन्हा’ था मर गया नामवर शायर,
दो क़लाम छोड़ गया निशानी में ।
दो क़लाम छोड़ गया निशानी में ।
ग़ज़ल
बाँट दिया बाप ने बच्चों को घर,
कहकर ये तेरा घर, ये तेरा घर ।
हमारा क्या है आज हैं कल नहीं,
पड़े रहेंगे कभी इधर कभी उधर ।
पड़े रहेंगे कभी इधर कभी उधर ।
ख़ुद पढ़ा न पाया अपने बच्चों को,
था बड़ा उस्ताद जानता है शहर ।
था बड़ा उस्ताद जानता है शहर ।
कमी न थी पहले ही नफ़रतों की,
बीवी ने तेरी घोल दिया ज़हर ।
बीवी ने तेरी घोल दिया ज़हर ।
'तन्हा' मुंतज़िर है मौत का अब
जाने कब मिल जाए तुम्हें ख़बर ।
मोहसिन 'तन्हा'
अलीबाग़
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