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शनिवार, 7 जनवरी 2017

व्यंग्य

मोबाइल की महिमा न्यारी

कुछ समय पहले दूरदर्शन पर एक लेखनी (कलम) का विज्ञापन आता था, जिसमें उसकी पारदर्शिता के कारण कहा जाता था कि सब कुछ दिखता है, वर्तमान समय में उस लेखनी का क्या हुआ, यह तो पता नहीं, परन्तु एक यन्त्र अवश्य मिल गया है जिसमें सब कुछ दिखता है। कर लो दुनिया मुट्ठी मेंयह वाक्य आप सबको अवश्य याद होगा। अब दुनिया के 80 प्रतिशत से अधिक लोगों के हाथ में वह यन्त्र शोभायमान है। उसका नाम है मोबाइल। सिर पर हेलमेट लगाने को हम अनिवार्य नहीं मानते, परन्तु मोबाइल पर कव्हर चढ़ाना, सुरक्षा गार्ड लगाना, कानों में श्रवण यन्त्र लगाना और झूमना बिल्कुल नहीं भूलते। लोग समझते हैं कि मोबाइल को हमने मुट्ठी में बन्द कर रखा है, जबकि वास्तविकता यह है कि मोबाइल ने हमको पूरी तरह ढँक रखा है। वह आपके वश में नहीं, बल्कि आप उसके वश में हैं। जैसे भगवान भक्त के वश में होते हैं, वैसे ही आप मोबाइल के वश में होते हैं।
घण्टी बजते ही आप चलायमान हो जाते हैं। चाहे आप नहा रहे हों, खा रहे हों, गा रहे हों, नाच रहे हों, कहीं जा रहे हों, या कहीं से आ रहे हों, पढ़ रहे हो, पढ़ रहे हों, पढ़ा रहे हों, पूजा कर रहे हों, रो रहे हों या सो रहे हों। तात्पर्य यह कि यदि आप प्राणवान हैं तो घण्टी का अनुसरण तुरन्त करते हैं, इतनी स्पूर्ति आपको अन्य किसी भी कर्म में आती हो तो बताएँ। प्रेमी-प्रेमिका को डेढ़ बजे समय देकर पौने दो बजे पहुँचते हैं। परिजनों की दवाई दो दिन बात आती है। बिजली का बिल बिना विलम्ब शुल्क के भरते ही नहीं। पानी के बिल को तो भूल ही जाते हैं। मोबाइल कम्पनियों ने जब देखा कि उनका प्रयास निरन्तर फलीभूत हो रहा है तो वे एण्ड्रायड मोबाइल ले आए और उसमें तमाम एप डालकर हममें ऐब पैदा करना शुरू कर दिए। धीरे-धीरे मोबाइल स्तर का पैमाना बन गया। ढाई इंच का मोबाइल अब छह और आठ इंच तक पहुँच गया। वाट्सएप ने ऐसा प्रभाव जमाया कि पास बैठे दो लोग आपस में वार्ता न करके मोबाइल से चैट करते हैं। घर में बैठा पति चाय बनाने के लिए पत्नी को मैसेज करता है। जो घर कभी चहल-पहल का केन्द्र होते थे, मोबाइल ने उनमें मरघट-सी शान्ति ला दी है।
मोबाइल के कारण लेखनी से लिखना लगभग बन्द-सा हो गया है। चिट्ठी पत्री-तार आदि सन्देशवाहकों को मोबाइल ने लील लिया है। अब लोग विवाह में केवल एक कार्ड छपवाते हैं उसे मोबाइल में डाल लेते हैं। उसके प्रतिष्ठार्थ वाले स्थान पर नाम बदल-बदल कर अपने परिजनों को वाट्सएप से भेज देते हैं। इस प्रकार कार्ड छपाई के हजारों रुपये बचा लेते हैं। बीमारी की स्थिति में लोग एक-दूसरे के पास जाकर बैठने और संवेदना प्रकट करने को पुराणपन्थी बातें मानते हैं। चैट करके एक-दूसरे का हाल-चाल जान लेते हैं। किसी की मृत्यु होने पर उसके घर तक नहीं जाते बल्कि मोबाइल से संवेदना सन्देश भेज  देते हैं। किसी की खुशी में शरीक होने के बजाय मोबाइल से शुभकामना, बधाई आदि प्रेषित करना कितना सरल हो गया है।
पहले लोग यात्रा के समय सहयात्री से चर्चा करके अपने सुख-दु:ख बाँटते थे। अब यात्रा कितनी भी लम्बी क्यों न हो। ट्रेन में, बस में, हवाई जहाज में जिसे देखो वही मोबाइल के वशीभूत होकर अपनी मस्ती में मस्त है। आसपास की गतिविधियों की सूचना के लिए कहीं घूमने की आवश्यकता नहीं है। मोबाइल खोलिए, पूरी दुनिया की सूचना उसमें समाहित है। सम्भोग से समाधि तक, गुलामी से आजादी तक, निर्माण से बर्बादी तक की जानकारी आपकी मुट्ठी में है।  मोबाइल में फिल्म देखिए, क्रिकेट, हॉकी, शतरंज आदि मैच  देखिए, कबड्डी और कॉमेडी देखिए। खाना बनाना, नाचना और गाना देखिए, अध्ययन कीजिए, अध्यापन कीजिये अर्थात् आवश्यक/अनावश्यक जो भी आप चाहें, वह सब मोबाइल पर उपलब्ध है। यात्रा हेतु रिजर्वेशन कीजिए, पैसे जमा कीजिए, पैसे निकाल लीजिए, पैसे स्थानान्तरित कर दीजिए। घर बैठे किसी भी परिजन से उसके चित्र सहित चर्चा कीजिए। विवाह आदि सम्बन्ध तय कीजिए, बिना घोड़ी और बाजे के विवाह कर लीजिए और न जमे तो तलाक भी दे दीजिए। मोबाइल से आदि कुछ भी खरीद सकते हैं। कुछ भी बेच सकते हैं, कुछ भी सुन सकते हैं, सुना सकते हैं, किसी से भी मिल सकते हैं, मिला सकते हैं। प्रेम, घृणा, सौहाद्र्र, सद््भाव, सेवा, परोपकार आदि सभी का सम्पादन कर सकते हैं। जोड़ सकते हैं, घटा सकते हैं, भाग दे सकते हैं और गुणा भी कर सकते हैं।
यह बात अलग है कि मोबाइल से इतनी सारी सेवाएँ लेने के बदले उसे कुछ देना भी पड़ता है। मसलन मोबाइल को रिचार्ज करना पड़ता है। बैटरी चार्ज करनी होती है। बहुत-सा समय देना होता है। परिजनों से दूर रहना होता है। गाना सुनते हुए वाहन चलाना कभी-कभी असमय अपाहिज भी कर सकता है अथवा जान भी देनी पड़ सकती है। बहरे होने की सम्भावना रहती है। बहुत देर तक उसमें ताका-झाँकी करने से आँखों की रोशनी भी जा सकती है। मोबाइल थामने वाले हाथों में सुन्नपन अथवा लकवा भी हो सकता है। एक ही आसन पर बहुत देर तक बैठकर मोबाइल में खोये रहने से कब्ज, एसिडिटी और मोटापा भी हो सकता है। स्वाभाविक चिड़चिड़ापन भी आता है। क्रोध की मात्रा में प्रगति होती है। ये सारे ऐब मोबाइल के योगदान वाले ऐप के सामने नगण्य हैं। दूध देने वाली गाय के दो लात खाने में ही ग्वाला अपनी भलाई समझता है। मोबाइल ने याददाश्त को कम कर दिया है। दिमाग जैसी नायाब चीज पर जोर लगाने की जरूरत नहीं है। कई लोग तो खुद का नम्बर भी मोबाइल में देखकर ही बता पाते हैं। परिजनों की पहचान, मोबाइल में सेव किए गए चित्रों से होती है। वैवाहिक वर्षगाँठ अथवा जन्मदिन सब अपने-अपने मोबाइल पर पहले से ही लोड फिल्म देखकर मना लेते हैं। इस प्रकार व्यवस्थाओं पर होने वाले खर्च को बचाते हैं और वह पैसा खुद के इलाज पर लगाते हैं। आप सुखी-संसार सुखी कहावत को मोबाइल कम्पनियाँ चरितार्थ कर रही हैं। दस गुने भाव में मोबाइल बेच रही हैं। सब कुछ दिखा रही हैं। फोन, सन्देश, बैंकिंग, नेटवर्किंग,चैटिंग आदि से अपार धन कमा रही है। चूँकि हमें विकासशील से विकसित की सूची में जाना है अत: विकसित लोगों की चाल में चाल मिलाना है। भले ही परिवार, समाज और यहाँ तक कि अपनों से ही दूर क्यों न होना पड़े, परन्तु जब हमने ठान लिया है, तो विकसित लोगों की सूची में नाम लिखाए बिना दम नहीं लेंगे, भले ही इसके चक्कर में हमारा दम ही क्यों न निकल जाए।
कुछ काम अभी भी ऐसे हैं जो मोबाइल नहीं कर सकता, उनके विषय में विचार करने की आवश्यकता है। मोबाइल मृत्यु के अवसर पर कन्धे नहीं लगा सकता। खुशी में खुश और दु:ख में दु:खी नहीं हो सकता। मोबाइल आपको भोजन नहीं परोस सकता, दवाई नहीं दे सकता। पानी नहीं पिला सकता। आपके सिर में तेल नहीं डाल सकता, आपके घाव पर पट्ठी नहीं बाँध सकता। आपसे संवेदना के दो बोल नहीं बोल सकता। मोबाइल एक यन्त्र है, वह आपको केवल यन्त्र बना सकता है। संवेदनाओं के लिए परिजनों की आवश्यकता होती है। निवेदन है कि यन्त्र में इतने अधिक न खो जाएँ कि उसके कारण एक तरफ आपके परिजन खो जाएँ और दूसरी तरफ अवसाद से ग्रसित एक दिन स्वयं आपका जीवन भी खो जाए।
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डॉ. स्वामीनाथ पाण्डेय
एम-24, महाशक्तिनगर, उज्जैन (म.प्र.)
मोबा. 98270-67961


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