सूचना

'सर्वहारा' में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में साहित्य की किसी भी विधा जैसे- कहानी, निबंध, आलेख, शोधालेख, संस्मरण, आत्मकथ्य, आलोचना, यात्रा-वृत्त, कविता, ग़ज़ल, दोहे, हाइकू इत्यादि का प्रकाशन किया जाता है।

रविवार, 29 सितंबर 2013

ग़ज़ल ( श्रद्धेय नरेंद्र दाभोलकर जी को श्रद्धांजलि )

     









ग़ज़ल   ( श्रद्धेय नरेंद्र दाभोलकर जी को  भीगी आँखों से श्रद्धांजलि )

ये उसके क़त्ल का ही बयान है ।
हमारे बीच अब भी शैतान है ।

झूँटे अक़ीदों की खिलाफ़ते जंग में,
सदा क्यों हारता रहा ईमान है ।

ये ख़ून जो घुला हुआ है मिट्टी में,
उसकी शहादत का निशान है ।

सुनकर तेरी जाँबाज़ी के क़िस्से,
रश्क कर रहा हिंदुस्तान है ।

राह दिखाती रहेगी रोशनाई,
साधना तेरी एक ज़ुबान है ।

क़ातिल क्यों मुँह छुपाता है,
तुझपर थूक रहा इंसान है ।

दहशतों से न दहलेगा दिल,
ये बुझदिली की पहचान है ।

तू हुआ शहीद हम हुए तन्हा
जाएँ कहाँ हर तरफ़ ढलान है । 
      
मोहसिन तन्हा
डॉ. मोहसिन ख़ान
सहायक प्राध्यापक हिन्दी 
जे.एस.एम. महाविद्यालय
अलीबाग (महाराष्ट्र) 402201

09860657970    

3 टिप्‍पणियां:

टिप्पणी करें