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रविवार, 25 जून 2017

सांस्कृतिक लेख

 रमज़ान से मानवीय इब्तिदा
चाँद मुबारक 

समरसता भारत की विशेषता ही नहीं, बल्कि भारत की प्राण-शक्ति है। ये विश्व का ऐसा अनोखा देश है; जहां हर धर्म, जाति, संप्रदाय में आस्था रखने वाले लोग साझा-सांस्कृतिक उत्सव मनाते हैं और एक-दूसरे को इस तरह ग्रहण करते हैं कि पता ही नहीं चलता कि विभेद अथवा भिन्नता किस स्थान पर है!!! भारत के सांस्कृतिक उन्मीलन की स्थिति को बड़ी सादगी और आपसी सहिष्णुता के साथ दर्शा रहे हैं, शैलेश त्रिपाठी॥ 
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जीवन में कितना समन्वय स्थापित हैं,जीवन में एक रस जिसे समरसता,अखण्डता,समानता नज़र आता हो ये रस किसी इंसान के रहमो करम से नही बल्कि प्रकृति का अनोखा खेल है जो मुसलसल मसर्रत,क़ुर्बत पैदा करती है रश्को के रंग को धूमिल बना देती और उस पर मोहब्बत के तसव्वुर की फ़ोटो लगा देती है।
इंसान कितनी भी इबादत कर ले जब तक वो अपने भीतर से रश्क को सोज़ नही कर देगा तब तक इबादत मुकम्मल नही होगी,उसके भीतर की इंसानियत भीतर ही रहेगी बाहर नही निकल सकती।
बड़े संयोग की बात है रमज़ान के ठीक बाद श्रावण मास का आरम्भ हो रहा है ,इसको एक इतफ़ाक नही बल्कि एक सुंदर और सुखद संयोग ही कहेगे क्योंकि
रमज़ान का माह जितना त्याग और पवित्रता का माना जाता है श्रावण मास भी उसी की भाँति इबादत,समन्वय का माना जाता है पर कहि न कहि रमज़ान और श्रावण ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है जीवन में सिक्का नही बदलता पहलू बदलते है। रमज़ान उन्ही को मनाने का हक है जो राम को जानते है जो राम के जान है,जिनको राम प्रिय हो,जिनके भीतर राम हो जो रोज़ा में रोज़ राम की मन्नते करते हो पर राम कौन है?
ये सबसे बड़ा सवाल है! 
जिसके भीतर त्याग,शीलता,शीतलता,ज्ञान,विनम्रता,सहज,सुशील,
समरसता,समन्वय,सत्यता हो वो राम है।
यहाँ राम और अल्लाह एक है लोगो ने अपने फायदे के लिए दोनों को बाट दिया पर एक स्तर पर दोनों एक है बस नज़रिया अलग है।
रमज़ान एक ऐसा पाक माह है जहा हर इबादत मुकम्मल होती है और श्रावण एक माह है जहा खुदा मुसलसल क़ुर्बत देती है।
रमज़ान और श्रावण माह ये दोनों जीवन को जीने का तरीका सिखाता है। श्री रामचरितमानस यदि 
Art Of Living एक प्रमेय है तो रमज़ान उसी प्रमेय का परीक्षण रमज़ान ही नही नवरात्र भी इसी श्रेणी में आता है। 
हमारे जीवन में गीता,कुरान,बाइबिल,गुरुग्रन्थ ये सभी समाज के हर वर्ग के भीतर सम्भावना प्रस्तुत करता है हृदय में समरसता,सत्यता और एकता की भावना को जागृत करता है जीवन को किस तरह से स्वच्छ,सुंदर,सहज बनाया जा सके ये ।
श्री मोहसिन खान तनहा साहब जिन्होंने समाज में समता और समन्वय को बढ़ावा दिया उन्ही की पंक्तिया-

मैं करू पाठ मानस,गीता का रोज़ तेरी तरह
और तुझको भी हिफ्ज़ मेरा कुरआन हो जाए।
मुझमे देखे राम तू,तुझमें महसूस हो अल्लाह
कुछ इस तरह अब अपना ईमान हो जाए।।

प्राचीन काल से देखा जाय तो समन्वय की धारा बह रही है न जाने कितने मध्यकालीन मुस्लिम कवि हुए,जिन्होंने समानता प्रस्तुत की हिन्दू सम्प्रदाय का जनलोकप्रिय कालजयी कृति श्रीरामचरित मानस  जिसको लिखने के बाबा तुलसीदास ने अपने एक अत्यंत प्रिय मित्र जो मुसलमान थे उनको सुनाया ये सब जीवन को व्यवस्थित और सुंदर ही तो बनाती है जीवन को लाजवाब और बेजोड़ ही तो बनाती है।
रमज़ान और श्रावण माह संसार के प्रत्येक मनुष्य को मनुष्य बनने की प्रेरणा देती है।
जीवन में क्रोध,काम,कपट ये सब जीवन को नीरस बनाते है पर रमज़ान और श्रावण,नवरात्र ये सब जीवन में रस बनाते है हमे इसका पूर्ण आनन्द लेना चाहिये।
ईद और दीवाली एक ऐसा त्यौहार है जो जीवन में प्रकाश ही प्रकाश लाती है पर किसके हृदय में प्रकाश आया ये तो खुदा की इबादत और ईश्वर की पूजा नही बल्कि मनुष्य के भीतर राम आने से ही पता चलेगा । रमज़ान और श्रावण हमे मानवीय जीत को उन्मुख करती है रमज़ान और श्रावण एक ऐसी मोहज़्ज़ब देती है जिससे रश्क सोज़ जाय । जिसके बाद मसर्रत मुसलसल हो जाय,तसव्वुर ज़हन से ज़हनसीब हो जाए,रमज़ान दो दिलो के बीच क़ुर्बत पैदा करती है और श्रावण दो दिलो में मसर्रत देती है जिससे रिफ़ाक़त आती है। रमज़ान से मानवीय होने की इब्तिदा होती है श्रवण मास में मुकम्मल होती है। जिससे हमे क़ुर्बत की नशेमन में प्रवेश कर खुर्शीद का फरियाद करके मसर्रत को प्राप्त करते है साथ ही हर इंसान के प्रति एहतिराम प्रस्तुत करते है। 
ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر) मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का तहवार मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है। ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر) मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का तहवार मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।
यह त्योहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाई जाती है। इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है)। पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था। रमज़ान इबादत और मानवीयता का त्यौहार है उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे. इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।
ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे. इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं।
इस  ईद में मुसलमान ३० दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। उपवास की समाप्ती की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रियादा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। और सांप्रदाय यह है कि ईद उल-फ़ित्र के दौरान ही झगड़ों -- ख़ासकर घरेलू झगड़ों -- को निबटाया जाता है।
ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। प्रार्थना से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है। ठीक इसी तरह श्रावण मास हैं जो रमज़ान की भाँति ही रहमत और क़ुर्बत का माह है,श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है. यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं. शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है. श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है. श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है. इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है. धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई होती है. इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है. हिंदु पंचांग के अनुसार सभी मासों को किसी न किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है उसी प्रकार  श्रावण मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व होता है. यह माह आशाओं की पुर्ति का समय होता है जिस प्रकार प्रकृति ग्रीष्म के थपेडों को सहती उई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं को सूनेपन को दूर करने हेतु यह माह भक्ति और पूर्ति का अनुठा संगम दिखाता है ओर सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है ।  
भगवान शिव इसी माह में अपनी अनेक लीलाएं रचते हैं. इस महीनें में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है. पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर श्रावण माह का स्वरुप प्रकाशित होता है. श्रावण माह के समय भक्त शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक कराते हैं. शिवलिंग का रुद्राभिषेक भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इन दिनों शिवलिंग पर गंगा जल द्वारा अभिषेक करने से भगवान शिव अतिप्रसन्न होते हैं. शिवलिंग का अभिषेक महाफलदायी माना गया है. इन दिनों अनेक प्रकार से  शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है जो भिन्न भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है. जैसे कि जल से वर्षा और शितलता कि प्राप्ति होती है. दूग्धा अभिषेक एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान कि प्राप्ति होती है. ईख के रस से धन संपदा की प्राप्ति होती है. कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है. दधि से पशु धन की प्राप्ति होती है ओर शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।    इस श्रावण मास में शिव भक्त ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है.  शिव का श्रावण में जलाभिषेक के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवों ओर राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो उस मंथन समय समुद्र में से अनेक पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्राथना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया.

जिससे उनका कंठ नीला हो गया समुद्र मंथन से निकले उस हलाहल के पान से भगवान शिव भी तपन को सहा अत:  मान्यता है कि वह समय श्रावण मास का समय था और उस तपन को शांत करने हेतु देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक आरंभ किया, तभी से यह प्रथा आज भी चली आ रही है प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा को पाते हैं और उन्हीं के रस में विभोर होकर जीवन के अमृत को अपने भीतर प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं।

इस तरह देखा जाय तो दोनों माह का जोड़ तो है पर कोई तोड़ नही इस लिए हम सब को जीवन में एकता,समानता,सत्यता एक राह पर चलते हुए जीवन को नदी की तरह बहता हुआ छोड़ देना चाहिए कहा गया है मनुर्भवः हमे मनुष्य बनना चाहिए और ये भी कहा गया-अद्वेष्टासर्वभूतानं अर्थात हमे कभी भी किसी भी व्यक्ति की बुराई नही करना चाहिए।
इसी शुभ प्रार्थना के साथ आप सभी इबादत का त्यौहार रमज़ान की मुबारक और मानवीय इब्तिदा का माह श्रावण की तैयारी हेतु शुभेच्छा!!!

जय हिन्द!...........
तू रखे रोज़ रोज़ा मेरी तरह
मैं करू उपवास तेरी तरह
चल आ रश्को के रंग को धूल बनाये
तुझको मुझमे मुझमे तुझको एक बनाये
रंग हरा हिन्दू,केशरिया मुसलमान बनाये
तू कर इबादत चाँद की
मैं करू तेरे आफताब की
हमे मिल जाये क़ुर्बत 
हम एक हो जाये
आरती मस्ज़िद में,मन्दिर में आज़ान हो जाए
तेरा तिलक मेरे सदको की पहचान हो जाए।।
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       शैलेश त्रिपाठी
S-15/112 ग्राम-भरलाई,पोस्ट-शिवपुर
जिला-वाराणसी
पिन कोड-221003
उत्तर प्रदेश
मो.-09889936681
      08853342329

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