मोहसिन खान की 2 ग़ज़लें
ग़ज़ल-1
आज इश्क़ का हरेक हिसाब होगा ।
किसी का चेहरा बेनक़ाब होगा ।
उसके वादे और न आने के बहाने,
आँखों में उसके कोई ख़ाब होगा ।
हम जब भी मिले ख़ुद को न समझा पाए,
उसके इम्तेहान में कौन क़ामयाब होगा ।
रात भर रोया है परिन्दा छत पर मेरी,
कल रात शबाब पर महताब होगा ।
तुम्हारे गुनाहों को ‘तन्हा’ माफ़ करते हैं,
यही सोचकर के एक सवाब होगा ।
ग़ज़ल-2
यूँ तो मेरी हरेक अदा से उसे प्यार था ।
ख़ोफ़े बदनामी, साथ रहना दुश्वार था ।
वो एक शख़्स जो अपनी दुनिया का था,
जो मेरी तरह इस दुनिया से बेज़ार था ।
दो रोटी के लिए काभी न की सौदागिरी,
कितने रात-दिन भूखा था, बेकार था ।
ज़माने बाद दिखा तो मज़दूरी करते हुए,
बच्चा मेरी जमात का जो होशियार था ।
तुम तो ख़ुदावाले हो क्यों मैख़ाने आये ।
‘तन्हा’ तो पैदाइशी ही गुनाहगार था ।
मोहसिन ‘तन्हा’
अलीबाग (महाराष्ट्र) 09860657970
khanhind01@gmail.com
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