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सोमवार, 21 जनवरी 2013

कविता 'युग-चिंता'



 युग-चिंता

कितनी पीड़ा सही होगी
ईसा के साथ उन हाथों ने,
सच को मारने के लिये !
जिन्होंने ठोंकी थीं कीलें,
झूट,अन्याय, अत्याचार की
आतताइयों के आदेश पर
ईसा के हाथों और पैरों में ।
दर्द सहा होगा हर नस में,
पर ज़्यादा न सहा होगा ईसा ने ।
हो सकता है, मेरे पूर्वजों ने
उस दर्द का हिस्सा किया होगा वहन
भीतर कायर की तरह
और तड़पा होगा, ईसा की तड़पन से भी अधिक
सही होगी पीड़ा,
ईसा की पीड़ा से भी अधिक
जब तक दर्द की अंतिम सांस
न हो गई होगी पूरी,
क्योंकि वह मजबूर थे
उन कीलों को गाड़ देने के लिये, ईसा में
और ईसा में थी ताक़त सहने की
हर मुसीबत, हर विरोध के साथ
इसीलिये मेरे पूर्वज नहीं बने ईसा
क्योंकि वह पंगु थे, ग़ुलाम थे ।
मेरे पंगु, ग़ुलाम  पूर्वजों ने सहा होगा
कितने ही दिनों तक
उस घिनौने कर्म को
और सहा होगा दु:ख मरती सत्यता का ।
आज मैं भी ऐसा ही घिनौना कर्म करना चाहता हूं !
मैं लिये फिर रहा हूं, सदियों से
अपने हाथों में कीलें और हथौड़ी
मेरे पास कीलें और हथौड़ी तो हैं
लेकिन एक बौझ और व्यर्थता के साथ !
मैं भी गाड़ देना चाहता हूं
हाथ और पैरों में कीलें
लेकिन कोई ईसा नहीं मेरे युग में
जिसके शरीर में ठोंककर कीलें
मैं उसकी सच्चाई को अमर बनादूं !
मैं जानता हूं,
मेरी यह तलाश
कभी न होगी पूरी
क्योंकि यहां ईसा हो ही नहीं सकता है कोई !
सब पंगु और ग़ुलाम हैं,
मेरे पंगु, ग़ुलाम  पूर्वजों की तरह
इसलिये कभी बड़ी ही चिंता के साथ
मैं हँस देता हूं ख़ुद पर
और कहता हूं, ख़ुद से
क्यों व्यर्थ काम की तलाश है तुझे
और मैं मान भी लेता हूं
यह काम जीतेजी
कभी नहीं कर पाऊंगा!  

 डॉ. मोहसिन ख़ान
 अलीबाग
09860657970 


2 टिप्‍पणियां:

  1. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 14/04/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  2. क्योंकि यहां ईसा हो ही नहीं सकता है कोई !
    सब पंगु और ग़ुलाम हैं,...मन की पीड़ा को सही शब्‍द मि‍ले हैं..बधाई

    जवाब देंहटाएं

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