तेजस पूनिया |
वर्तमान समय वाक़ई टीवी की दुनिया के लिए अँधेरा बनकर सामने आ रहा है। एक ओर अभिव्यक्ति की आजादी और दूसरी और उन्हीं पर बैन, वो भी किसी एक ही चैनल या व्यक्ति, समुदाय विशेष पर। हालिया दिनों में घट रही घटनाओं पर नज़र दौड़ाई जाए और उनके बारे में अथॉरिटी (सरकार) से आप पूछने जाएँ तो आपका मिलेगा। "बाबा जी का ठुल्लू" राजनीति की आड़ में पत्रकार सबसे पहले निशाना बनाए जाते हैं। तेजस पुनिया का आलेख वर्तमान संदर्भों में मीडिया पर हो रहे अमानवीय आक्रमणों के संदर्भ में देखा जा सकता है।
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लोकतंत्र की गाड़ी के तीन पहिए होते हैं- विधायिका, कार्यपालिका, न्याय पालिका और इसके बाद चौथा स्तम्भ आता है, जिसे मीडिया कहते हैं। जिनको चलाने वाला गाड़ीवान बना- संविधान। संविधान की आत्मा है- न्याय भाव। भारत में इसी तरह जीवन के चार पुरुषार्थ बताये गए हैं। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। इनका संचालक है धर्म। धर्म की आत्मा है। मंगलभाव। संविधान साधुमत होता है, जो लोकमत को अनुशासित रखता है। धर्म, नैतिक मूल्य होता है, जो अर्थ और काम को नियंत्रित रखता है। जिसे हम साहित्य, कथा-दर्शन आदि कहते हैं, उनका संबंध 'साधुमत' और 'नैतिक मूल्य' से जुड़ता है। (दस्तावेज- 114 जनवरी-मार्च 2007)
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लोकतंत्र की गाड़ी के तीन पहिए होते हैं- विधायिका, कार्यपालिका, न्याय पालिका और इसके बाद चौथा स्तम्भ आता है, जिसे मीडिया कहते हैं। जिनको चलाने वाला गाड़ीवान बना- संविधान। संविधान की आत्मा है- न्याय भाव। भारत में इसी तरह जीवन के चार पुरुषार्थ बताये गए हैं। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। इनका संचालक है धर्म। धर्म की आत्मा है। मंगलभाव। संविधान साधुमत होता है, जो लोकमत को अनुशासित रखता है। धर्म, नैतिक मूल्य होता है, जो अर्थ और काम को नियंत्रित रखता है। जिसे हम साहित्य, कथा-दर्शन आदि कहते हैं, उनका संबंध 'साधुमत' और 'नैतिक मूल्य' से जुड़ता है। (दस्तावेज- 114 जनवरी-मार्च 2007)
21वीं सदी सूचना तंत्र की है। सूचना के नवीन
उपकरण सामाजिक आधिपत्य, सायबर साम्राज्यवाद एवं सामाजिक संरचनाओं तथा
उत्तर आधुनिक सामाजिक क्रिया कलापों के वाहक हैं। 21वीं सदी की केंद्रीय धूरी ही जनसंचार है। यह एक ऐसा कौशल तथा भौतिक उपक्रम है; जो सूचना को एकत्र करके उनका प्रसंस्करण, हस्तांतरण व सृजन करता है तथा पुरानी सूचनाओं को सुरक्षित
रख नवीन सूचनाओं के पुनः उत्पादन का कार्य करता है। आधुनिक मिडिया ने बढ़ते वैश्विक
बाजारों को देखते हुए विश्व स्तर पर अमेरिकीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित व
प्रोन्नत किया है। 1999 के सियेटल प्रतिवाद की प्रौद्योगिकी व्याख्या से अलग
अंतर्दृष्टि विकसित करें तो नवीन मीडिया संस्कृति का राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषण आज
अत्यावश्यक है। पूर्व उत्तराधिकारियों की तरह नवीन प्रौद्योगिकी का उद्भव तथा
आदर्श, विरोधाभासी व संघर्ष युक्त है। भारत में सूचना क्रांति और संचार क्रांति का
आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया से गहरा संबंध है। आर्थिक उदारीकरण के परिणाम स्वरूप
बहुराष्ट्रीय संचार एवं सूचना कम्पनियों को देश में अबाध व्यापार करने की छूट मिली
और आज सूचना तकनीक का प्रवेश आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए खतरे
पैदा कर रहा है। राष्ट्रीय हितों की चिंता किये बगैर मनमाने ढंग से सूचना तकनीकी
रूपों को देश में व्यवहार में लाया जा रहा है।
जनसंपर्क के ऐतिहासिक विकास का काल विभाजन
करने पर हम निम्न प्रकार से उसे देख पाते हैं। जनसम्पर्क का प्रारम्भ अर्थात आदिकाल
/ अथवा जिसे आप प्राचीनकाल भी कह सकते हैं। आरम्भ से 1500 ई० तक चला। तत्पश्चात मध्यकाल 1500 से 1900 ई० और फ़िर आया आधुनिककाल जो अब तक चल रहा है।
किन्तु इसमें भी दो भाग बने स्वतंत्रता से पूर्व का काल पूर्व स्वातंत्र्य काल 1901 से 1947 इसके बाद का काल उत्तर स्वातंत्र्य काल जी कि आज़ादी के ठीक बाद से निरन्तर प्रगति करता हुआ आ रहा
है। आज़ादी के बाद के काल ने हमें मोबाइल, कम्प्यूटर, टी.वी., रेडियो, इंटरनेट इत्यादि सभी उपकरण एवं मीडियाई
माध्यम से आधुनिक से उत्तर आधुनिक बनाया। उत्तर आधुनिकता को लेकर ही "कलम
कैमरा और बलात्कार लेख में वर्तिका नन्दा लिखती हैं- "तुरंत हंगामा करना और
फिर भूल जाना मीडिया की फ़ितरत है। याद कीजिए 15 अक्टूबर 2003 का वह दिन जब न्यूज़ मीडिया के हाथ एक
धमाकेदार खबर लगी थी। ख़बर थी - सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम के पार स्विट्जरलैंड की एक
राजनयिक का बलात्कार होना।"
वर्तिका
नंदा के अन्य लेख मुंबई काण्ड : जाग गया हिंदुस्तान, पकती खबर में अधकचरे सच, खुद की खबर पर खामोश मीडिया। इत्यादि सभी
भीतरी सच्चाइयाँ बयाँ करते नज़र आते हैं। मीडिया के आधुनिकरण की ओर लौटते कदमों को
ध्यान में एखकर ही शायद धूमिल और अकबर इलाहाबादी ने यह सब कहा होगा-
"लोकतंत्र हमारे यहाँ
एक ऐसी धानी
है।
जिसमें आधा
तेल
आधा पानी
है।"
(धूमिल)
"जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो।"
(अकबर इलाहाबादी)
और वहीं
इसके दूसरे और लोकतंत्र का मख़ौल उड़ाते हुए 'रघुवीर सहाय' लिखते हैं।
"लोकतंत्र का अंतिम क्षण है!
कहकर आप
हँसे!"
'जी हाँ हुजूर मैं ख़बर बेचता हूँ, किस्म-किस्म की ख़बर बेचता हूँ। लेख में डॉ० लता शिरोडकर
खबरों के बाजारीकरण से बाजारू बन रही भाषा पर चिंता व्यक्त करती हैं और कहती हैं।
आज की संचार क्रांति बाजारोन्मुख है। जहाँ ज्ञान, सूचना, जनता की अभिव्यक्त आदि बातें गौण हैं। इसी
कड़ी में आगे सुधीर पचौरी अपनी किताब 'मीडिया जनतंत्र और आतंकवाद' के पहले ही अध्याय में कारगिल युद्ध का वर्णन करते हुए उसके
प्रसारण के इलेक्ट्रानिक मीडिया को मुखरता से अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं। जो आज
की सच्चाई भी है- "एक दैनिक एक्शन सीरियल की तरह आता है। कारगिल युद्ध।
अट्ठाईस साल बाद एक नायक, एक सचमुच का हीरो मिल रहा है हमें। बहुत आराम
से हम उसे बनता और मरता देखते हैं। जो जाता है तिरंगों के कफ़न में लिपटकर आता है।
इससे अधिक दारुण कुछ नहीं हो सकता। कि अठारह बीस साल के बच्चे लाशों में बदल जाते
हैं। और कुछ किस्से बचे रह जाते हैं। जिन्हें हम फिर सीरियलों या फिल्मों में देखेंगे। हर तरफ़ की धोखाधड़ी के जीवन में अब भी
ऐसे मासूम लोग बचे हैं। जो वाकई जान पर खेल जाते हैं' ...... आखिर ऐसी नोबत आई क्यूँ? जब सुधीर पचौरी के इस लेख को अध्याय को पढ़ते हैं। तो वर्तमान समय में
पत्रकारों की खो रही आवाज़ भी मद्धिम सी दिखाई पड़ती हैं। जहाँ पूरे देश में आज
बामुश्किल 10-20 स्वतंत्र पत्रकार बचे हैं। वर्तमान समय वाक़ई
टीवी की दुनिया के लिए अँधेरा बनकर सामने आ रहा है। एक ओर अभिव्यक्ति की आजादी और
दूसरी और उन्हीं पर बैन। वो भी किसी एक ही चैनल या व्यक्ति, समुदाय विशेष पर। हालिया दिनों में घट रही घटनाओं पर नज़र
दौड़ाई जाए और उनके बारे में अथॉरिटी (सरकार) से आप पूछने जाएँ तो आपका मिलेगा।
"बाबा जी का ठुल्लू" राजनीति की आड़ में पत्रकार सबसे पहले निशाना बनाए
जाते हैं। क्योंकि एक पत्रकार ही हमें न जाने कहाँ कहाँ से खबरें लाकर दिखाता है, बताता है। उसी पर जब पाबंदियां लगने लगें तो आप समझ सकते
हैं। हवा केवल दिल्ली की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत की ख़राब बह रही है। जिसमें
हुकूमत का डर सबसे ज़्यादा है। आधुनिक से उत्तर आधुनिक होते इस मीडिया युग में आज हजारों,लाखों की तादात में समाचार कई तरह से जनता के समक्ष दिन भर
आते रहते हैं। जिसमें सबसे बड़ा हाथ मोबाइल का है। जहाँ एक क्लिक पर दुनिया तबाह हो
जाने का खतरा तक है। आज हमें तय करना ही होगा किस ओर हैं हम। और हमारी पॉलिटिक्स
क्या है?
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परिचय
नाम- तेजस पूनिया
जन्म- 7 नवम्बर 1992 श्री गंगानगर (राजस्थान)
प्रारम्भिक शिक्षा - श्री गंगानगर
उच्च शिक्षा/ स्नातक - बी.ए हिंदी ऑनर्स (किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय)
स्नातकोत्तर- हिंदी विभाग , भाषा एवं मानविकी अध्ययन केंद्र, राजस्थान केंद्रीय विश्विद्यालय
नाम- तेजस पूनिया
जन्म- 7 नवम्बर 1992 श्री गंगानगर (राजस्थान)
प्रारम्भिक शिक्षा - श्री गंगानगर
उच्च शिक्षा/ स्नातक - बी.ए हिंदी ऑनर्स (किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय)
स्नातकोत्तर- हिंदी विभाग , भाषा एवं मानविकी अध्ययन केंद्र, राजस्थान केंद्रीय विश्विद्यालय
विविध- कई राष्ट्रीय एवं
अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में भागीदारी एवं पेपर प्रस्तुति, कविताएँ अंतरराष्ट्रीय
ई-पत्रिका जनकृति (विमर्श केंद्रित अंतरराष्ट्रीय मासिक ई-पत्रिका) में प्रकाशित
कुछ अन्य कविताएँ राष्ट्रीय त्रैमासिक ई- पत्रिका में प्रकाशित एवं अन्य लेख आदि।
संपर्क
कुछ अन्य कविताएँ राष्ट्रीय त्रैमासिक ई- पत्रिका में प्रकाशित एवं अन्य लेख आदि।
संपर्क
तेजस पुनिया
स्नातकोत्तर हिंदी (पूर्वार्ध)
हिंदी विभाग
भाषा एवं मानविकी अध्ययन केंद्र
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय,
किशनगढ़- अजमेर
सम्पर्क +919166373652
+918802707162
ईमेल- tejaspoonia@gmail.com
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यह लेखक के अपने विचार हैं, जिससे सहमत-असहमत हुआ जा सकता है। सर्वहारा इन विचारों के प्रकाशन के प्रति ज़िम्मेदार है न कि मान्यताओं के।
स्नातकोत्तर हिंदी (पूर्वार्ध)
हिंदी विभाग
भाषा एवं मानविकी अध्ययन केंद्र
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय,
किशनगढ़- अजमेर
सम्पर्क +919166373652
+918802707162
ईमेल- tejaspoonia@gmail.com
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यह लेखक के अपने विचार हैं, जिससे सहमत-असहमत हुआ जा सकता है। सर्वहारा इन विचारों के प्रकाशन के प्रति ज़िम्मेदार है न कि मान्यताओं के।
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