हिन्दी साहित्य में यूँ तो दोहों की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, परंतु दोहों में अपनी संवेदना, भाव और चिंताओं को समा लेना रचनाकारों का कमाल का हुनर होने के साथ अप्रतिम शैली के प्रति रुचि का भाव भी दर्शाता है। हिन्दी और अन्य भाषाओं के कई कवियों ने दोहों को ही अपने साहित्य की अभिव्यक्ति के लिए उत्तम माना जिसमे कबीर, तुलसीदास, रहीम, बिहारी इत्यादि ने इसे पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया। इसी के तहत आधुनिक कवियों ने दोहों की परंपरा में नए भाव, अनुभूतियों, विचारों, प्रतीकों, बिंबों इत्यादि को नये सिरे से तलाश करते हुए अपना अप्रतिम प्रतिभा का योगदान दिया। "सर्वहारा" ब्लॉग एक बहुत ही विशेष दोहाकार को खोजकर आपके सामने लाया है, इनके दोहे समय, समाज, संघर्ष, घात-प्रतिघात और व्यक्ति के मन की गहराइयों से संवाद करते हुए इस तरह जीवन में उतर जाते हैं जैसे पानी हमारी प्यास बुझाते हुए हममें समाहित हो जाता है। आज करवाचौथ के अवसर पर दोहकार का प्रथम दोहा ही आपके जीवन के प्रतिरूप को दर्शाता हुआ एक विश्वास की पूँजी आपको सौंप जाएगा ऐसा मेरा विश्वास है-
संपादक- "सर्वहारा" (डॉ. मोहसिन ख़ान)
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रचनाकर का परिचय-
संपादक- "सर्वहारा" (डॉ. मोहसिन ख़ान)
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नाम : विजेंद्र शर्मा (डिप्टी कमांडेंट- सीमा सुरक्षा बल)
शिक्षा : बी टेक, एम. बी. ए.
जन्म : 15 अगस्त 1972 हनुमानगढ़ राजस्थान
समकालीन शायरों पर एक शख्सीयत ...नाम से मुख़्तलिफ़ मुख़्तलिफ़ अखबारात के लिए लेखन, शायरी से मुत्लिक़ बहुत से मज़मून और दोहा लेखन ..."जीने के आदाब" एक ऑडियो सी. डी. 51 दोहों की 2015 में मंज़रे आम पर (यू ट्यूब पर उपलब्ध)
सम्प्रति .... डिप्टी कमांडेंट - सीमा सुरक्षा बल , जोधपुर में अधिकारी
शिक्षा : बी टेक, एम. बी. ए.
जन्म : 15 अगस्त 1972 हनुमानगढ़ राजस्थान
समकालीन शायरों पर एक शख्सीयत ...नाम से मुख़्तलिफ़ मुख़्तलिफ़ अखबारात के लिए लेखन, शायरी से मुत्लिक़ बहुत से मज़मून और दोहा लेखन ..."जीने के आदाब" एक ऑडियो सी. डी. 51 दोहों की 2015 में मंज़रे आम पर (यू ट्यूब पर उपलब्ध)
सम्प्रति .... डिप्टी कमांडेंट - सीमा सुरक्षा बल , जोधपुर में अधिकारी
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दोहे-
दोहे-
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इक रिश्ता बेनाम सा, चला थाम के हाथ !
इक रिश्ता घुटता रहा, लेकर फेरे साथ !!
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आँख खुली तो भोर ने, माँगा यही हिसाब !
पलकों की दहलीज़ तक, आये कितने ख़्वाब !!
इक रिश्ता घुटता रहा, लेकर फेरे साथ !!
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आँख खुली तो भोर ने, माँगा यही हिसाब !
पलकों की दहलीज़ तक, आये कितने ख़्वाब !!
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सीखो किसी फ़क़ीर से, जीने के आदाब !
यारों इस तालीम की, होती नहीं किताब !!
*****
पहरेदारी मुल्क़ की, सौंप हमारे हाथ !
सारा भारत चैन से, सोये सारी रात !!
*****
आँखों को भी है गिला, करे शिकायत गाल !
बैरी ख़ुद आया नहीं, भिजवा दिया गुलाल !!
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सर पर माँ का हाथ है, क्या दूँ और सुबूत !
मुझको लिए बगैर ही, लौट गए यमदूत !!
पहरेदारी मुल्क़ की, सौंप हमारे हाथ !
सारा भारत चैन से, सोये सारी रात !!
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आँखों को भी है गिला, करे शिकायत गाल !
बैरी ख़ुद आया नहीं, भिजवा दिया गुलाल !!
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सर पर माँ का हाथ है, क्या दूँ और सुबूत !
मुझको लिए बगैर ही, लौट गए यमदूत !!
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सच का अपना खेल है, खेल सके तो खेल !
जलता है सच का दिया, बिन बाती बिन तेल !!
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सच का अपना खेल है, खेल सके तो खेल !
जलता है सच का दिया, बिन बाती बिन तेल !!
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याद तुम्हारी जब कभी, कर देगी हड़ताल !
पूछेंगे उस रोज़ हम, ख़ुद से अपना हाल !!
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कभी ठहरते ही नहीं, जीवन के दिन -रात !
कभी ठहरते ही नहीं, जीवन के दिन -रात !
पर ठहरा वो एक पल, जिसमे तुम थे साथ !!
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क्या -क्या हमको दे गये, ग़ालिब तुलसी सूर !
नस्ल हमारे दौर की, इनसे भागे दूर !!
नस्ल हमारे दौर की, इनसे भागे दूर !!
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जलते रहे चराग़ से, महफ़िल में हम रात !
चाँद सितारों की छपी, अख़बारों में बात !!
चाँद सितारों की छपी, अख़बारों में बात !!
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दिल की चादर तंग है, कहाँ पसारें पाँव !
चलें यार इस शहर से, अपने-अपने गाँव !!
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कहाँ गई वो लोरियां, कहाँ गये वो चाव !
बच्चों ने भी फाड़ दी, काग़ज़ वाली नाव !!
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चलें यार इस शहर से, अपने-अपने गाँव !!
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कहाँ गई वो लोरियां, कहाँ गये वो चाव !
बच्चों ने भी फाड़ दी, काग़ज़ वाली नाव !!
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इक सच बोला और फिर, देखा ऐसा हाल !
कुछ ने नज़रें फेर ली, कुछ की आँखें लाल !!
कुछ ने नज़रें फेर ली, कुछ की आँखें लाल !!
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उलझें नहीं अज़ान से, फिर मंदिर के शंख !
अगर वक़्त पे नोच दें, अफ़वाहों के पंख !!
अगर वक़्त पे नोच दें, अफ़वाहों के पंख !!
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ऐसे दिन भी आ गए, किन करमों के लेख !
चूहा बोले शेर से, मुझे छेड़ के देख !!
चूहा बोले शेर से, मुझे छेड़ के देख !!
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देना है तो दे ख़ुदा, ऐसा हमे मिज़ाज !
ख़ुद्दारी सर पर रहे, ठोकर में हो ताज !!
ख़ुद्दारी सर पर रहे, ठोकर में हो ताज !!
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भले क़लम दे हाथ में, या दे दे तलवार !
मौला इनकी तू मगर, पैनी रखियो धार !!
मौला इनकी तू मगर, पैनी रखियो धार !!
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मुझको यही सवाल बस, नौच रहा दिन रात !
मैं जब तेरे साथ था, तू था किसके साथ !!
मुझको यही सवाल बस, नौच रहा दिन रात !
मैं जब तेरे साथ था, तू था किसके साथ !!
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तब तो हमको सौंप दी, जब था तेज़ बहाव !
पहुँच किनारे हो गयी, किसी और की नाव !!
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वफ़ा किसी के साथ तो, साथ किसी के घात !
रूह किसी के साथ है, जिस्म किसी के साथ !!
पहुँच किनारे हो गयी, किसी और की नाव !!
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वफ़ा किसी के साथ तो, साथ किसी के घात !
रूह किसी के साथ है, जिस्म किसी के साथ !!
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शिद्दत वफ़ा जुनून का, होता है ये मेल !
ऐसे वैसे खेल लें, इश्क़ नहीं वो खेल !!
ऐसे वैसे खेल लें, इश्क़ नहीं वो खेल !!
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मुर्दा से इस जिस्म में, फूंक जाय है जान !
कैसे तेरी याद का, उतरेगा अहसान !!
कैसे तेरी याद का, उतरेगा अहसान !!
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दरिया तेरा दायरा, बढ़ तो गया ज़रूर !
मगर किनारे हो गए, पहले से भी दूर !!
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इस्टेशन पर रह गए, हम लहराते हाथ !
कोई ख़ुद को छोड़कर, हमे ले गया साथ !!
मगर किनारे हो गए, पहले से भी दूर !!
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इस्टेशन पर रह गए, हम लहराते हाथ !
कोई ख़ुद को छोड़कर, हमे ले गया साथ !!
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वाह वाह जनाब विजेंद्र शर्मा जी क्या बात है...............................
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मोहसिन सर इस कोहिनूर से हमे मिलाने के लिए |
पंकज शर्मा जी आपका बहुत आभार!!!
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