ऊँचा उसका क़द हो गया ।
ग़ुरूर उसे बेहद हो गया ।
ख़ौफ़ से सिर झुकवाकर,
अवाम का समद हो गया ।
फैलाकर सूबे में दहशत,
गुनाहों का सनद हो गया ।
जिसने हाथ रंगे थे ख़ून से,
गवाहों में नामज़द हो गया ।
खिलाफ़ते क़ौमपरस्तिश में,
'तन्हा' क्यों बद हो गया ।
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ग़ुरूर उसे बेहद हो गया ।
ख़ौफ़ से सिर झुकवाकर,
अवाम का समद हो गया ।
फैलाकर सूबे में दहशत,
गुनाहों का सनद हो गया ।
जिसने हाथ रंगे थे ख़ून से,
गवाहों में नामज़द हो गया ।
खिलाफ़ते क़ौमपरस्तिश में,
'तन्हा' क्यों बद हो गया ।
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क्या बात बुरी लगी ज़माने की ।
जो भुलादी आदत मुस्कुराने की ।
दीवार बनके खड़ी है मुसीबत,
फ़िर हो एक कोशिश गिराने की ।
लगाकर गले भुलादो रंजिशें,
बात हो नफ़रतें मिटाने की ।
दहशदगर्दी के नाम पे क़त्ल,
ज़रुरत है मुद्दआ उठाने की ।
झुलसा है मुल्क़ कौमी दंगों में,
चल रही है साज़िश जलाने की।
'तन्हा' करता है दुआ रोज़ रब से,
कोई न हो वज्ह आज़माने की ।
मोहसिन ‘तन्हा’
डॉ. मोहसिन ख़ान
सहायक प्राध्यापक हिन्दी
जे.एस.एम. महाविद्यालय,
अलीबाग (महाराष्ट्र) 402201
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