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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

ग़ज़ल

मछलियों को तैरने का हुनर चाहिए ।
गंदला है पानी साफ़ नज़र चाहिए।

बातों से न होगा हासिल कुछ यहाँ,
आवाज़  में  थोड़ा  असर  चाहिए।

न देखो ज़ख्मों से बहता ख़ून मेरा,
लड़ने के लिए तो जिगर चाहिए।

कचरा ख़ुद नहीं होता दूर दरिया से,
फेंकने को किनारे पर लहर चाहिए।

हर सूरत बदलती है कोशिशों से ही,
कौन  कहता  है  मुक़द्दर  चाहिए।

अब चीर दे अँधेरे का सीना 'तन्हा',
रोशनी के लिए नई सहर चाहिए।


मोहसिन 'तन्हा'

1 टिप्पणी:

  1. महोदय जी नमस्ते, इस ब्लौग पर आकर हर्ष हुआ... भूमिका इतनी सुंदर है कि मन आनंदित हो गया।
    सादर।

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