लोग जाने कहाँ-कहाँ अपनी नज़र रखते हैं।
खुद का पता नहीं, सबकी ख़बर रखते हैं।मैं गिन रहा हूँ जेब में पैसे हैं कितने बाक़ी,
ये दुकानवाले हसरतें सजाकर रखते हैं।
फ़िक्र है मुझको, इंतेज़ाम करने हैं और भी,
मुसीबतें आ लिपटीं, पाँव जिधर रखते हैं।
फ़ैसले किये ग़लत तुमने, तो दख़ल दी है,
तजुर्बे कुछ हम तुमसे बेहतर रखते हैं।
'तनहा' झुलस गया मैं तपती दोपहरों में,
और रोज़ वो मेरी राह में पत्थर रखते हैं।
©-मोहसिन 'तनहा'
भाई मोहसिन आपका ब्लाग देखा और पूरी बात ध्यान से पढ़ी। मेरे मन में दूसरे ही सवाल उठ रहे हैं। मुझे नहीं पता कि दा हजार कहानियां हिंदी में कितने बरसों में और कितने लेखकों ने लिखीं। लिखी तो ज्यादा ही गयी हेांगी तभी तो प्रतिलिपि के पास दा हजार पहूंची। वे 10000 कहानियां कहां है जिनमें से ये पन्द्रह चुनी गयी हैं। विजय सपत्ति की तीन कहानियां 15 में शामिल हैं। कहीं भारी गडबड़ है। मैं अपनी कहानी इस सूची में देखकर हैरान हूं कि उसे 11000 से भी अधिक पाठकों ने पढा। रेपिस्ट की पाठक संख्या 27000 से अधिक बतायी गयी है। मुझे नहीं पता था कि हिंदी कहानी के नेट पर ही 27000 से अधिक पाठक हैं। आपकी बात में दम है। जारी रखें
जवाब देंहटाएं