वो सवालों से हालात को उलझाते जा रहे हैं।
हम जवाबों से बात को सुलझाते जा रहे हैं।
यूँ तो हममें ऐब बहोत हैं पर क्या करें।
आईना उन्हें बार बार दिखाते जा रहे हैं।
उनकी बेहयाई पे उनको ग़ुरूर बहोत,
हम अपनी ग़ैरत को बचाते जा रहे हैं।
दफ़नाकर बाप को कब्रस्तान से आते ही,
भाई अपना हक़ घर पे जताते जा रहे हैं।
बड़े ओहदेदारों की महफ़िलों में आकर,
पल पल पर ज़िल्लत उठाते जा रहे हैं।
कभी शै कभी मात और बिगड़ते हालात,
यूँ ज़िन्दगी से रिश्ता निभाते जा रहे हैं।
देखकर इस शहर की इबादतगाहों को,
हम ज़ात अपनी सबसे छुपाते जा रहे हैं।
'तन्हा' बाँटकर नेकियाँ, गुनाह ख़रीदता है,
लोग शख्सियत का अंदाज़ा लगाते जा रहे हैं।
मोहसिन 'तन्हा'
हम जवाबों से बात को सुलझाते जा रहे हैं।
यूँ तो हममें ऐब बहोत हैं पर क्या करें।
आईना उन्हें बार बार दिखाते जा रहे हैं।
उनकी बेहयाई पे उनको ग़ुरूर बहोत,
हम अपनी ग़ैरत को बचाते जा रहे हैं।
दफ़नाकर बाप को कब्रस्तान से आते ही,
भाई अपना हक़ घर पे जताते जा रहे हैं।
बड़े ओहदेदारों की महफ़िलों में आकर,
पल पल पर ज़िल्लत उठाते जा रहे हैं।
कभी शै कभी मात और बिगड़ते हालात,
यूँ ज़िन्दगी से रिश्ता निभाते जा रहे हैं।
देखकर इस शहर की इबादतगाहों को,
हम ज़ात अपनी सबसे छुपाते जा रहे हैं।
'तन्हा' बाँटकर नेकियाँ, गुनाह ख़रीदता है,
लोग शख्सियत का अंदाज़ा लगाते जा रहे हैं।
मोहसिन 'तन्हा'

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